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*जय सियाराम, जय मेहेरामेहेर सदा*
जाति पाँति धनु धरमु बड़ाई।
प्रिय परिवार सदन सुखदाई।।
सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई।
तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई।।
*अर्थात-*
जाति, पाति, धन, धर्म, बड़ाई, प्यारा परिवार और सुख देनेवाला घर- सबको छोड़कर जो केवल आपको ही हृदय में धारण किये रहता है, हे रघुनाथ जी ! आप उसके हृदय में रहिये।।
यह बेहद महत्वपूर्ण और सुंदर दोहा, श्रीरामचरित मानस के अयोध्या कांड से है।
भगवान सियाराम, लक्ष्मण जी सहित, वन गमन करते हुये महर्षि वाल्मीकि जी के आश्रम पहुँचते हैं।
यहाँ भगवान राम, महर्षि वाल्मीकि से पूछते हैं कि इस वन में हम कहाँ रहें।
तब, महर्षि वाल्मीकि जी कहते हैं
'जो जाति पाँति, धन, धर्म को छोड़ कर आपको हृदय में धारण करते हैं, आप उसके हृदय में रहिये'
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दीपावली की ढेर सारी बधाईयाँ और शुभकामनायें !!!
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*जय सियाराम, जय मेहेरामेहेर सदा*
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Chandar Meher