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पूज्यनीय गोस्वामी तुलीदास जी कृत श्रीरामचरित मानस के बाल कांड में शिवपार्वती संवाद में दी गई यह सुंदर चौपाई की पंक्तियाँ हैं -
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*हुई है वही जो राम रखि राखा।*
*को कर तर्क बढ़ावे साखा।।*
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यह सुंदर पंक्तियाँ उद्धृत कर रही हैं कि मनुष्य के अहंकार का कोई मोल नहीं है, जिस कारण वह विचार करता है कि कर्ता वह स्वयं है तथा इस सोच के कारण वह कर्ता भाव में रह कर ईश्वर तथा ईश्वर कृपा से वंचित रह जाता है। परम धाम उसकी नियति है किंतु वह जन्मजन्मांतर भटकता रह जाता है।
पंक्तियाँ, मार्ग प्रशस्त करती हैं कि अहंकार त्याग कर, ईश्वर के प्रति प्रेमवश हो उसका भरोसा करें कि कर्ता तो वही हैं।
ईश्वर पर यह भरोसा, उससे प्रेम होने के उपरांत ही सम्भव होता है। इसीलिये प्रभु राम को प्रेम प्यारा है।
भगवान कहते हैं कि कलयुग में मुझे प्राप्त करने का मात्र प्रेम ही एकमात्र मार्ग है।
प्रेम हृदय में उपजता है, बुद्धि तर्क करती है, इसलिये यह पंक्तियाँ तर्क करने से रोकती हैं। क्योंकि जब तक बुद्धि को विराम नहीं मिलता, तब तक हृदय में विराजे प्रभु राम से साक्षात्कार नहीं होता।
प्रभु राम के साक्षात दर्शन तो प्रेम से ही होंगे।
*जहाँ भरोसा है, वहाँ भय नहीं।*
*सादर -*
*जय सियाराम जय मेहेरामेहेर जय जिनेन्द्र सदा*
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Chandar Meher