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Sunday, November 5, 2023

श्री रामचरित मानस से.....श्री राम-केवट जी प्रसंग

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महाराज दशरथ जी की आज्ञा पाकर, सियाराम, लक्ष्मण जी के साथ जब वन गमन कर गये तो पिता दशरथ जी से रहा न गया और उन्होंने अपने मंत्री सुमंत्र को यह कह कर वन भेजा कि किसी प्रकार तीनों को वन घुमा कर, फिर मना कर वापस अयोध्या ले आना।

सुमंत्र जी ने बहुत प्रयास किया किन्तु भगवान न माने तब दुखी मन से सुमन्त्र जी भगवान राम की बात मान कर अयोध्या लौट चले।

जब रथ मुड़ कर चलने लगा तो रथ के घोड़े पलट-पलट कर भगवान को देखते हुये, हिनहिनाने लगे।
श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि जब भगवान से दूर होने पर पशु इतने व्याकुल हो गये तो मनुष्य कितने व्याकुल हुये होंगे।

निषाद राज के साथ भगवान सियाराम और लक्ष्मण जी ने यात्रा जारी रखी और वे गंगा जी के तीर (किनारे) पहुँच गये जहाँ इनकी भेंट केवट जी से हुई। भगवान ने केवट जी से उन सब को नाव द्वारा गंगा जी पार कराने का आग्रह किया किन्तु केवट ने उन्हें नाव पर चढ़ाने को मना कर दिया।

केवट को यह मालूम था कि भगवान के अँगूठे के स्पर्श से अहिल्या पाषाण से सुंदर स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गईं और मुनि जी के पास लौट गईं।

केवट को यह भय था कि जब पाषाण, स्त्री के रूप में परिवर्तित हो सकता है तो उनकी नाव तो काष्ठ (लकड़ी) की बनी हुई है। कहीं उनकी नाव भी स्त्री रूप में परिवर्तित हो गई और मुनि के पास चली गई तो उनकी तो दाल-रोटी ही छिन जायेगी।

कुछ देर भगवान के आग्रह को विनम्रतापूर्वक मना करने के पश्चात्  केवट जी इस शर्त पर भगवान को नाव पर चढ़ाने को तैयार हो गये कि, भगवान उन्हें (केवट को) अपने पाँव पखारने देंगे।

भगवान मुस्कुराते हुये केवट जी से पाँव पखरवाते हुये माता सीता और भ्राता लक्ष्मण की ओर देखते जा रहे थे और मानस संवाद कर रहे थे कि आप दोनों को एक एक पैर ही पखारते हैं ।

भगवान के विवाह के पूर्व लक्ष्मण जी भगवान के दोनों चरणों को पखारते थे किंतु विवाह के बाद  भगवान के एक पैर को माता सीता और दूसरे पैर को लक्ष्मण जी पखारने लगे।

किन्तु केवट जी पर भगवान की ऐसी कृपा हुई की उन्होंने अपने दोनों पैर पखारने का अवसर उन्हें प्रदान किया।

भगवान के पाँव पखारने के बाद, केवट तथा उनके परिवार ने चरणामृत ग्रहण किया। इस तरह से केवट ने अपने परिवार और पितरों का उद्धार किया।

जब केवट जी, गंगा जी के जल से भगवान के चरण पखार रहे थे तब गंगा जी की बुद्धि सकुचा गई और वे सोचने लगीं कि वही भगवान जिन्होंने वामनावतार के रूप में मात्र दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था, अब वे गंगा जी पार नहीं कर पा रहे हैं। किंतु जल्द ही उन्होंने अपने हृदय में अनुभव किया कि यह तो वही हैं जिनके चरणों से मेरा उद्भव हुआ है और अभी जो कुछ भी हो रहा है यह मात्र भगवान की लीला है (ईश्वर को जानने के लिये भाव और अनुभव का आवश्यता होती है, बुद्धि से उन्हें समझा नहीं जा सकता)।

केवट जी ने सबको अपनी नाव में बैठा कर गंगाजी के पार उतारा किन्तु केवट जी ने अपना मेहनताना लेने से पहले ही मना कर दिया था।

भगवान बड़े संकोच में पड़ गये। माता सीता ने भगवान का मन पढ़ लिया (पति पत्नी के सम्बन्ध की गहराई को किस सुंदरता से समझाया है, परस्पर सम्बन्ध ऐसे जहाँ भावनाओं को शब्द रूप देने की आवश्यकता ही नहीं है)। माता सीता ने अपनी अँगूठी भगवान को दी ताकि वे केवट जी को मेहनताना दे सकें।

किन्तु केवट जी, भगवान से कहते हैं कि जब आप यात्रा से लौटेंगे तब वे मेहनताना लेंगे। यह सुनकर भगवान, केवट जी को ईश्वर भक्ति का अनुपम आशीर्वाद प्रदान करते हैं (ईश्वर भक्ति का अवसर भी ईश्वर की अनुमति से ही मिलता है),
*जय सियाराम दरबार जय मेहेरामेहेर*
🙏😇😇🌈🌈🙏

1 comment:

  1. आदरणीय, आपको यह पोस्ट कैसा लगा अपने विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखकर बताईयेगा। सादर प्रियतम अवतार मेहेरबाबा जय जिनेन्द्र सदा 💐💐

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Your welcome on this post...
Jai Baba to You
Yours Sincerely
Chandar Meher

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