-2+1= -1 (पुनर्जन्म)
(+) + (-) = 0 (मुक्ति, मोक्ष, ईश्वर प्रप्ति)
उपरोक्त समीकरण में धनाकत्मक चिन्ह सत्कर्मों का परिचायक है और ऋणात्मक चिन्ह दुष्कर्मों का परिचायक है. एक आम व्यक्ति अपने जीवन में सद्भाव से जो कर्म करता है वे सत्मकर्म और जो कर्म दुर्भाव से करते हैं वे दुष्कर्म कहलाते हैं. किये गये कर्म के पीछे के भाव ही यह तय करते हैं के कर्म सकर्म हैं या दुष्कर्म.
सत्कर्म करने पर परिणामस्वरूप सकरात्मक संस्कार बनते ही हैं(+1). जिसके फलस्वरूप उसे अगला कुछ समय स्वर्ग का सुख प्राप्त करता है फिर उसे जन्म लेना ही पड़ता है जिसमें उसे सुख की प्रप्ति होती है. यदि व्यक्ति दुष्कर्म करता है तो उसे नर्क के दुख झेलने पड़ती हैं और अगले जन्म में भी दुख झेलने पड़ते हैं.
अवतार मेहेर बाबा कहते हैं की परमपिता परमेश्वर की कृपा से सकरात्मक (+) और नकरात्मक (-) संस्कार बराबर हो जाते हैं तब वे विलोपित हो जाते हैं और इसके परिणामस्वरूप इस चक्र से मुक्ति मिल जाती है या मोक्ष मिल जाता है. परमपिता परमेश्वर की प्राप्ति हो जाती है.
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Chandar Meher