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Friday, September 4, 2009

पैराडाईज़ चलेंगे...

एक मकड़ी के जाल में फँसी मक्खी को यदि आप बचाते हैं तो क्या यह कार्य पाप होगा या पुण्य. यदि मकड़ी के दृष्टिकोण से देखें तो क्या होगा और अगर मक्खी के दृष्टिकोण से देखें तो इस कार्य को किस प्रकार से आप परिभाषित करेंगे. दृष्टिकोण परिभाषा बदल देता है. 

एक ही कार्य के दो अलग पहलू हो सकते हैं. अवतार मेहेर बाबा यह स्पष्ट करते हैं कि पाप करें या पुण्य दोनों ही प्रकार के कर्म से बन्ध बनते हैं. पाप कर्म के वजह से कुछ समय के लिये नर्क (हैल) का अनुभव करना पड़ता है जबकि पुण्य कर्म के एवज में स्वर्ग (हैवेन) का अनुभव लेना होता है. जैसे ही पाप या पुण्य के वजह से निर्मित बन्ध क्षीण पड़ते हैं एक बार फिर इस धरती पर अगला जन्म लेना ही होता है.

हमारा अहंकार हमें हमारे कर्म से जोड़ता है. बुद्धि अहंकार की संगिनी है. बुद्धि रूपी धरा पर विचाररूपी पौधे उगते हैं. मन, बुद्धि का करीबी सहयोगी है. 

यदि कार्य बिना अहंकार भाव के, ईश्वर को सम्पूर्ण रूप से समर्पित कर के किया जाये तो बन्ध नहीं बनते और अध्यात्मिक पथ पर हम अग्रसर हो जाते हैं और ईश्वर के परमधाम (पैरडाईज़) पहुँचते हैं जहाँ कभी ना खत्म होनें वाला आनंद का महासागर है. अवतार मेहेर बाबा जी की जय ...

5 comments:

  1. मेरी मर्ज़ी या खुदा की yeh wali post achhi lagi..mujhe lagta hai word verification ki etni jaroorat nahi...hta de agar ho sake to...

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  2. Thankou for responding and for yor suggestion also...
    Chandar Meher

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  3. बहुत सुंदर ,वैविध्यपूर्ण ब्लॉग जिसमे आध्यात्मिकता और आनंद दोनों का मेल है .
    मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं ,
    आपका ही -
    डॉ.भूपेन्द्र

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  4. सुन्दर विचार है , पढना अच्छा लगा । आभार ।

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Your welcome on this post...
Jai Baba to You
Yours Sincerely
Chandar Meher

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