पवारखेड़ा, होशंगाबाद के स्टेशन इंचार्ज और प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. वाय. डी.तिवारी सर ने बातों ही बातों में बताया कि और युगों की तुलना में, कलयुग में ईश्वर को थोड़े से प्रयासों से प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि परिस्थितियाँ प्रतिकूल होती हैं इसी संदर्भ में-
कमल को खिलने के लिये कीचड़ ज़रूरी होता है. कीचड़ के बगैर कमल की कल्पना कर पाना मुश्किल है। यदि कमल को पाना है तो कीचड़ में से हो कर गुज़रना ही पड़ता है और कीचड़ को पार करना ही पड़ता है।
इसे पार किये बगैर कमल को पाना असम्भव है. इस कार्य को स्वयं की इच्छापूर्ति के लिये किया गया तो कमल पाने के बावजूद उसकी खूबसूरती उसकी खुशबू को नहीं पाया जा सकता है. क्योंकि ऐसी परिस्थिति में कमल और कीचड़ के द्वैत में फँसने का खतरा रहता है।
यह द्वैत जगत माया है और जैसा कि अवतार मेहेर बाबा कहते हैं माया तो मात्र ईश्वर की छाया है. यदि इस कार्य को ईश्वर की मर्ज़ी को मानते हुये और साक्षी भाव से किया गया तो सम्पूर्ण कमल प्राप्त होगा, खुशबू और खूबसूरती सहित और कीचड़ में सनने का भय भी नहीं होगा।
यानी ईश्वर की छाया नहीं बल्कि स्वयं ईश्वर की प्रप्ति होगी आप खुद कीचड़ के बीच कमल हो जायेंगे. अन्य लोगों के लिये प्रेरणा के स्रोत बन जायेंगे।
तो, आज की दुनिया में, आस पास व्याप्त भ्रष्टाचार से परेशान नहीं होना है बल्कि अपने आध्यात्मिक पथ पर अडिग आगे और आगे चलते जाना है।
पीछे आते पथिकों के लिये पक्की रोड ना सही पगडंडी ही बनाते चलना है....
बहुत ऊँची बात है : "आप खुद कीचड़ के बीच कमल हो जायेंगे।"
ReplyDeleteकमल की चाह में कीचड़ से गुजरते हुए रियलाइज़ेशन होता है कि कमल पाना ही पर्याप्त नहीं है, उसकी खुशबू, उसका रंग कैसे पाएंगे? तब समझ में आता है कि अल्टीमेटल गोल कमल पाना नहीं बल्कि कमल होना होता है।
बहुत अच्छे... मेहर बाबा की मेहर सदा बनी रहे...
- आनंद
bahut achcha likha hai .
ReplyDelete