संस्मरण सुनाते हुए डॉ. आर. श्रीवस्तव, भूतपूर्व अधिष्ठाता, कृषि अभियंत्रिकी महाविद्यालय, जबलपुर एवं हमारे पिता के मित्र ने अपने छात्र जीवन की (चलीस के दशक की) एक मज़ेदार कहानी सुनाई.
मेरी क़ृषि अभियंत्रिकी की पढ़ाई ऎग्रिकल्चर इंस्टिट्यूट, इलहाबाद से हुई. मैं पढ़ने में बहुत तेज़ था किंतु हर वर्ष अपने एक सहपाठी से कुछ अंकों से पिछड़ कर दूसरा स्थान ही पाता था. बहुत् पूछ्ने पर भी वह कक्षा में प्रथम आने का और मेरे पिछड़ने का राज़ नहीं बताता था. अभियंत्रिकी कोर्स की पढ़ाई के अंतिम इम्तिहान के बाद मैंने उससे पूछा कि अब तो बता दो की बात क्या है? मैं इतने प्रयासों के बाद भी तुमसे पीछे ही क्यों रहा.
मेरे सह्पाठी ने मुस्कुराते हुए कहा ठीक है आज मैं तुम्हें बताता हूं. तुम्हें ध्यान है जब हम एक डिपार्टमेंट से दूसरे डिपार्ट्मेंट, बड़े से लॉन को पार कर के जाते थे उस समय तुम लोग दोस्तों से बातचीत करने में मशगूल रहते थे. और मैं क्या करता था ? मैंने पूछा कि तुम क्या करते थे ? उसने कहा मैं होंठॉं के पीछे तम्बाखू दबा कर तुम सब के साथ साथ चलता था किंतु तम्बाखू मुँह में होने के कारण कुछ बोल नहीं पाता था. मैनें ध्यान दिया और पाया कि मेरा सहपाठी सही बोल रहा था. इस समय क्लास में टीचर ने जो भी पढ़ाया होता उस विषय का मैं मनन कर लेता था. इसी वजह से मैं परीक्षा में वह सब लिख पाता था जो टीचर चाहते थे पर तुम वह लिखते थे जो तुम समझते थे. बस यहीं सारा फर्क आ जाता था.
इतना बता कर उनकी आँखों में मुस्कुराहट फैल गई !!!
मेरी क़ृषि अभियंत्रिकी की पढ़ाई ऎग्रिकल्चर इंस्टिट्यूट, इलहाबाद से हुई. मैं पढ़ने में बहुत तेज़ था किंतु हर वर्ष अपने एक सहपाठी से कुछ अंकों से पिछड़ कर दूसरा स्थान ही पाता था. बहुत् पूछ्ने पर भी वह कक्षा में प्रथम आने का और मेरे पिछड़ने का राज़ नहीं बताता था. अभियंत्रिकी कोर्स की पढ़ाई के अंतिम इम्तिहान के बाद मैंने उससे पूछा कि अब तो बता दो की बात क्या है? मैं इतने प्रयासों के बाद भी तुमसे पीछे ही क्यों रहा.
मेरे सह्पाठी ने मुस्कुराते हुए कहा ठीक है आज मैं तुम्हें बताता हूं. तुम्हें ध्यान है जब हम एक डिपार्टमेंट से दूसरे डिपार्ट्मेंट, बड़े से लॉन को पार कर के जाते थे उस समय तुम लोग दोस्तों से बातचीत करने में मशगूल रहते थे. और मैं क्या करता था ? मैंने पूछा कि तुम क्या करते थे ? उसने कहा मैं होंठॉं के पीछे तम्बाखू दबा कर तुम सब के साथ साथ चलता था किंतु तम्बाखू मुँह में होने के कारण कुछ बोल नहीं पाता था. मैनें ध्यान दिया और पाया कि मेरा सहपाठी सही बोल रहा था. इस समय क्लास में टीचर ने जो भी पढ़ाया होता उस विषय का मैं मनन कर लेता था. इसी वजह से मैं परीक्षा में वह सब लिख पाता था जो टीचर चाहते थे पर तुम वह लिखते थे जो तुम समझते थे. बस यहीं सारा फर्क आ जाता था.
इतना बता कर उनकी आँखों में मुस्कुराहट फैल गई !!!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है !
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा पापा!😊😊♥️♥️
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