बात चालीस के दशक की है जब हमारे पिता, इलाहबाद एग्रीकल्चरल इंस्टीट्यूट में पढ़ा करते थे। इस इंस्टिट्युट में फीस काउन्टर पर बैठी अँगरेज़ महिला, छात्र छात्रों के शोर शराबे से बेहद परेशान थी .
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Friday, December 5, 2008
आप कौन हैं...
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हस्ती चढ़िए ज्ञान की, सहज दुलीचा डार
ReplyDeleteश्वान रूप संसार है, भूंकन दे झकमार
कहते को कहि जान दे, गुरु की सीख तू लेय
साकट जन और स्वान को, फेरि जवाब न देय
राष्ट्र भाषा परिषद् की परम्परा यहाँ भी कायम रहे :)
:)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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