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Tuesday, November 28, 2023

श्रीरामचरित मानस से: महर्षि वाल्मीकि- भरत संवाद

दोहा:

सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ। 

हानि लाभ जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ।।


*अर्थात्:* महर्षि वाल्मीकि कहते हैं कि भावी बहुत प्रबल होती है, हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश सब ईश्वर के हाथ में होता है ( *अर्थात्*  इन सब पर मनुष्य का कोई बस नहीं है, यदि कुछ बस में है तो वह है कर्तव्य निर्वहन)।


यह दोहा अयोध्या कांड से है जब भरत जी अपने ननिहाल ले लौट कर अयोध्या में घटी घटनाओं के बारे में जानकर अत्यंत दुखी और विचलित हो जाते हैं। पिता का संस्कार करने के बाद महर्षि वाल्मीकि उनसे कहते हैं कि तुम्हारे पिता ने वचन निभाने के लिये अपने प्राण त्याग दिये। 


उन्होंने अयोध्या का राज तुम्हें दिया है अतः किसी भी प्रकार की सोच न करो। सोच तो उनके बारे में करनी चाहिये जो अनुचित तथा अमर्यादित कार्य और व्यवहार करते हैं। तुम्हारे पिता को तो सद्गति प्राप्त हुई है। अपनी पिता की इच्छा का सम्मान कर जो तुम्हारा कर्तव्य है उसे निभाओ। जो पिता की आज्ञा का पालन करते है उन्हें पाप नहीं लगता है और उन्हें अपयश नहीं मिलता बल्कि वे सुख और सुयश के भागी होते हैं और इन्हें इंद्रपुरी (स्वर्ग) मिलता है।

 *जय सियाराम जय जिनेन्द्र जय मेहेरामेहेर सदा* 

🙏🌈🌈🙏

Saturday, November 25, 2023

श्रीरामचरित मानस से:प्रभु राम के दर्शन

 🌻🌼🍀🌻🌼☘️ 

पूज्यनीय गोस्वामी तुलीदास जी कृत श्रीरामचरित मानस के बाल कांड में शिवपार्वती संवाद में दी गई यह सुंदर चौपाई की पंक्तियाँ हैं -

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 *हुई है वही जो राम रखि राखा।*

*को कर तर्क बढ़ावे साखा।।* 

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यह सुंदर पंक्तियाँ उद्धृत  कर रही हैं कि मनुष्य के अहंकार का कोई मोल नहीं है, जिस कारण वह विचार करता है कि कर्ता वह स्वयं है तथा इस सोच के कारण वह कर्ता भाव में रह कर ईश्वर तथा ईश्वर कृपा से वंचित रह जाता है। परम धाम उसकी नियति है किंतु वह जन्मजन्मांतर भटकता रह जाता है।


पंक्तियाँ, मार्ग प्रशस्त करती हैं कि अहंकार त्याग कर, ईश्वर के प्रति प्रेमवश हो उसका भरोसा करें कि कर्ता तो वही हैं। 


ईश्वर पर यह भरोसा,  उससे प्रेम होने के उपरांत ही सम्भव होता है। इसीलिये प्रभु राम को प्रेम प्यारा है।


भगवान कहते हैं कि कलयुग में मुझे प्राप्त करने का मात्र प्रेम ही एकमात्र मार्ग है।


प्रेम हृदय में उपजता है, बुद्धि तर्क करती है, इसलिये यह पंक्तियाँ तर्क करने से रोकती हैं। क्योंकि जब तक बुद्धि को विराम नहीं मिलता, तब तक हृदय में विराजे प्रभु राम  से साक्षात्कार नहीं होता।

प्रभु राम के साक्षात दर्शन तो प्रेम से ही होंगे।


 *जहाँ भरोसा है, वहाँ भय नहीं।* 

 *सादर -* 

 *जय सियाराम जय मेहेरामेहेर जय जिनेन्द्र सदा*

🙏🌈🌈😇😇🙏

श्रीरामचरित मानस से (भगवान को केवल प्रेम प्यारा है)

 🌻🌼🍀🌻🌼☘️

श्रीरामचरितमानस के अयोध्या कांड में वर्णन है कि भगवान श्रीरामचंद्रजी, सीतामाता और लक्ष्मण जी ने चित्रकूट में रहना प्रारम्भ किया।

यहाँ आपके दर्शन करने के लिये वन में रहने वाले भील और कोल आये तथा भगवान से सेवा करने का उन्होंने आग्रह किया तब भगवान ने अपने प्रेम से वनवासियों को संतुष्ट किया।

इसी प्रसंग से निम्नलिखित सुंदर पंक्तियाँ हैं जिनके अनुसार भगवान राम को केवल प्रेम प्यारा है।


*चौपाई:* 

रामहि केवल प्रेमु पियारा।

जानि लेउ जो जान निहारा।। 

राम सकल बनचर तब तोषे।

कही मृदु वचन प्रेम परिपोषे।।


*अर्थात:* 

श्री रामचंद्र भगवान को केवल प्रेम ही प्यारा है जो जानने वाला हो (जानना चाहता हो) वह जान ले। तब श्रीरामचंद्रजी ने प्रेम से परिपुष्ट हुए (प्रेमपूर्ण) कोमल वचन कहकर उन सब वन में विचरण करने वाले लोगों को संतुष्ट किया

जय सियाराम जय मेहेरामेहेर सदा

🙏😇😇🌈🌈🙏

श्रीरामचरित मानस से: भगवान श्रीरामचंद्र जी का निवास स्थान

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*जय सियाराम, जय मेहेरामेहेर सदा* 


जाति पाँति धनु धरमु बड़ाई। 

प्रिय परिवार सदन सुखदाई।।


सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई। 

तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई।।


 *अर्थात-* 

जाति, पाति, धन, धर्म, बड़ाई, प्यारा परिवार और सुख देनेवाला घर- सबको छोड़कर जो केवल आपको ही हृदय में धारण किये रहता है, हे रघुनाथ जी ! आप उसके हृदय में रहिये।।


यह बेहद महत्वपूर्ण और सुंदर दोहा, श्रीरामचरित मानस के अयोध्या कांड से है।


भगवान सियाराम, लक्ष्मण जी सहित, वन गमन करते हुये महर्षि वाल्मीकि जी के आश्रम पहुँचते हैं।  


यहाँ भगवान राम, महर्षि वाल्मीकि से पूछते हैं कि इस वन में हम कहाँ रहें। 


तब, महर्षि वाल्मीकि जी कहते हैं 

'जो जाति पाँति, धन, धर्म को छोड़ कर आपको हृदय में धारण करते हैं, आप उसके हृदय में रहिये'

🌷🍬🌷🍬🌷🍬


दीपावली की ढेर सारी बधाईयाँ और शुभकामनायें !!!


🍥🍭🍥🍭🍥🍭

 *जय सियाराम, जय मेहेरामेहेर सदा* 

🙏😇😇🌈🌈🙏

श्री रामचरित मानस से दो प्रसंग

प्रसंग:1

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बालकाण्ड के दोहों में दिया है कि महाराज जनक, भगवान राम के चरण पखार रहे हैं।

यहीं यह लिखा भगवान के नाम के स्मरण से कलयुग के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं।

 *जय बाबा जय जिनेन्द्र, जय मेहेरामेहेर सदा*

🙏😇😇🌈🌈🙏


प्रसंग: 2

भगवान राम और लक्ष्मण जी को लेकर गुरु वशिष्ठ जी जनकपुरी के महल में आदरपूर्वक ठहरा दिये गये हैं, महाराजा जनक , अतिथियों का स्वागत कर वापस जा चुके हैं। अब भगवान राम, लक्ष्मण जी के मन को पढ़ लिया और उन्होंने गुरु वशिष्ठ से अनुमति माँगते हुये कहा कि लक्ष्मण जी जनकपुरी भ्रमण करना चाहते हैं।

गुरु वशिष्ठ भगवान राम को प्रेमवश वचन कहते हैं कि हे राम! तुम नीति की रक्षा कैसे नहीं करोगे, 

हे तात्, तुम तो धर्म की मर्यादा का पालन करने वाले हो, तुम  प्रेम के वशीभूत हो कर सेवकों को सुख देने वाले हो।

*जय सियाराम सदा* 

🙏🌈🌈🙏

Sunday, November 5, 2023

श्री रामचरित मानस से.....श्री राम-केवट जी प्रसंग

🌻🌼☘️🌻🌼🍀

महाराज दशरथ जी की आज्ञा पाकर, सियाराम, लक्ष्मण जी के साथ जब वन गमन कर गये तो पिता दशरथ जी से रहा न गया और उन्होंने अपने मंत्री सुमंत्र को यह कह कर वन भेजा कि किसी प्रकार तीनों को वन घुमा कर, फिर मना कर वापस अयोध्या ले आना।

सुमंत्र जी ने बहुत प्रयास किया किन्तु भगवान न माने तब दुखी मन से सुमन्त्र जी भगवान राम की बात मान कर अयोध्या लौट चले।

जब रथ मुड़ कर चलने लगा तो रथ के घोड़े पलट-पलट कर भगवान को देखते हुये, हिनहिनाने लगे।
श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि जब भगवान से दूर होने पर पशु इतने व्याकुल हो गये तो मनुष्य कितने व्याकुल हुये होंगे।

निषाद राज के साथ भगवान सियाराम और लक्ष्मण जी ने यात्रा जारी रखी और वे गंगा जी के तीर (किनारे) पहुँच गये जहाँ इनकी भेंट केवट जी से हुई। भगवान ने केवट जी से उन सब को नाव द्वारा गंगा जी पार कराने का आग्रह किया किन्तु केवट ने उन्हें नाव पर चढ़ाने को मना कर दिया।

केवट को यह मालूम था कि भगवान के अँगूठे के स्पर्श से अहिल्या पाषाण से सुंदर स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गईं और मुनि जी के पास लौट गईं।

केवट को यह भय था कि जब पाषाण, स्त्री के रूप में परिवर्तित हो सकता है तो उनकी नाव तो काष्ठ (लकड़ी) की बनी हुई है। कहीं उनकी नाव भी स्त्री रूप में परिवर्तित हो गई और मुनि के पास चली गई तो उनकी तो दाल-रोटी ही छिन जायेगी।

कुछ देर भगवान के आग्रह को विनम्रतापूर्वक मना करने के पश्चात्  केवट जी इस शर्त पर भगवान को नाव पर चढ़ाने को तैयार हो गये कि, भगवान उन्हें (केवट को) अपने पाँव पखारने देंगे।

भगवान मुस्कुराते हुये केवट जी से पाँव पखरवाते हुये माता सीता और भ्राता लक्ष्मण की ओर देखते जा रहे थे और मानस संवाद कर रहे थे कि आप दोनों को एक एक पैर ही पखारते हैं ।

भगवान के विवाह के पूर्व लक्ष्मण जी भगवान के दोनों चरणों को पखारते थे किंतु विवाह के बाद  भगवान के एक पैर को माता सीता और दूसरे पैर को लक्ष्मण जी पखारने लगे।

किन्तु केवट जी पर भगवान की ऐसी कृपा हुई की उन्होंने अपने दोनों पैर पखारने का अवसर उन्हें प्रदान किया।

भगवान के पाँव पखारने के बाद, केवट तथा उनके परिवार ने चरणामृत ग्रहण किया। इस तरह से केवट ने अपने परिवार और पितरों का उद्धार किया।

जब केवट जी, गंगा जी के जल से भगवान के चरण पखार रहे थे तब गंगा जी की बुद्धि सकुचा गई और वे सोचने लगीं कि वही भगवान जिन्होंने वामनावतार के रूप में मात्र दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था, अब वे गंगा जी पार नहीं कर पा रहे हैं। किंतु जल्द ही उन्होंने अपने हृदय में अनुभव किया कि यह तो वही हैं जिनके चरणों से मेरा उद्भव हुआ है और अभी जो कुछ भी हो रहा है यह मात्र भगवान की लीला है (ईश्वर को जानने के लिये भाव और अनुभव का आवश्यता होती है, बुद्धि से उन्हें समझा नहीं जा सकता)।

केवट जी ने सबको अपनी नाव में बैठा कर गंगाजी के पार उतारा किन्तु केवट जी ने अपना मेहनताना लेने से पहले ही मना कर दिया था।

भगवान बड़े संकोच में पड़ गये। माता सीता ने भगवान का मन पढ़ लिया (पति पत्नी के सम्बन्ध की गहराई को किस सुंदरता से समझाया है, परस्पर सम्बन्ध ऐसे जहाँ भावनाओं को शब्द रूप देने की आवश्यकता ही नहीं है)। माता सीता ने अपनी अँगूठी भगवान को दी ताकि वे केवट जी को मेहनताना दे सकें।

किन्तु केवट जी, भगवान से कहते हैं कि जब आप यात्रा से लौटेंगे तब वे मेहनताना लेंगे। यह सुनकर भगवान, केवट जी को ईश्वर भक्ति का अनुपम आशीर्वाद प्रदान करते हैं (ईश्वर भक्ति का अवसर भी ईश्वर की अनुमति से ही मिलता है),
*जय सियाराम दरबार जय मेहेरामेहेर*
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Friday, September 29, 2023

क्षमावाणी पर्व

🌻🌼☘️🌻🌼🍀

जैन धर्म में मनाया जाने वाला क्षमा वाणी का पर्व एकदम निराला है साथ ही क्षमा वाणी की अवधारणा भी बहुत ही प्यारी है। इस पर्व का अर्थ बहुत गहरा है।

यह पर्व, दस दिवसीय पर्युषण पर्व, पूर्ण होने (अनंत चतुर्दशी के दिन) के पश्चात् अगले दिन पूर्णिमा को मनाया जाता है।

इस दिन, प्रतिवर्ष, जैन धर्मावलंबी, अपने परिजनों व परिचितों के प्रति, जाने अनजाने हुई भूल-चूकों के लिये, एक दूसरे से क्षमा याचना करते हैं और दूसरे क्षमाप्रार्थियों को क्षमा करते हैं, इस तरह वे अपने मन को पवित्र करते हैं ।

अपनी भूल और गलतियों को स्वीकार करना, फिर उनके लिये क्षमा माँगने में बहुत आत्मिक शक्ति की आवश्यकता होती है । वस्तुतः अपनी गलतियों के लिए माफी माँगना सरल नहीं है लेकिन इससे कहीं अधिक मुश्किल  है  किसी व्यक्ति को हृदय से क्षमा करना। इन दोनों ही अवस्थाओं में मनुष्य का अहंकार आड़े आता है। क्योंकि जब तक अहंकार समाप्त न हो जाये तब तक क्षमा माँगना अथवा क्षमा करना लगभग असंभव होता है।

इसी की सरल व्याख्या करते हुए प्रियतम अवतार मेहेरबाबा ने बताया है कि  भूल-चूक में अथवा जान बूझकर किसी व्यक्ति के प्रति  हमारे द्वारा किये गये अन्याय के लिये  क्षमा माँगना अथवा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा हमारे प्रति किये गये अन्याय को क्षमा करने से हमारे मन पर अंकित कर्म की छाप (कर्म बंध अथवा संस्कार) से हम मुक्त हो जाते हैं और कर्मबंध का यह बोझ हमारे अगले जन्म  में नहीं जाता है।

इस तरह हमारी क्रमिक आत्मिक उन्नति होती जाती है, जब तक की ईश्वर कृपा से हमारा मन  पूर्ण रूपेण निश्छल हो जाये।

ऐसा प्रतीत होता है कि क्षमा वाणी का पर्व अहंकार त्याग की भी उत्तम राह है।

*जय प्रियतम अवतार मेहेरबाबा जय जिनेन्द्र सदा*

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