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Saturday, August 31, 2024

असन्त संत, अविवेक विवेक

असन्त और सन्त

संत असंतन्हि कै असि करनी। 

जिमि कुठार चंदन आचरनी॥

काटइ परसु मलय सुनु भाई। 

निज गुन देइ सुगंध बसाई॥

ताते सुर सीसन्ह चढ़त जग बल्लभ श्रीखंड।

अनल दाहि पीटत घनहिं परसु बदन यह दंड॥


श्री रामचरितमानस जी के उत्तर कांड में गोस्वामी तुलसीदास जी बताते हैं कि  भरत जी, लक्ष्मण जी, और शत्रुघ्न जी के आग्रह पर हनुमान भगवान, राम भगवान से संत और असन्तों के बीच के अंतर को स्पष्ट करने के लिये निवेदन करते हैं। 


अंतर स्पष्ट करते हुये भगवान, कुल्हाड़ी का उदाहरण देते हुये कहते हैं कि कुल्हाड़ी, चंदन के पेड़ को काटता है किन्तु चंदन का का पेड़ अपनी सुगंध कुल्हाड़ी को दे देती है। अपने इस कृत्य के कारण कुल्हाड़ी के फल को आग में तपा कर पीटा जाता है किन्तु चन्दन देवताओं के शीश पर चढ़ता है। कुल्हाड़ी की प्रवत्ति असन्तों की किन्तु चन्दन की प्रवत्ति सन्तों की है।


अविवेक और विवेक

सुनहु तात माया कृत गुन अरु दोष अनेक।।

गुन यह उभय न देखिअहिं देखिअ सो अबिबेक।।


आगे भगवान राम विवेक और अविवेक के बीच अंतर स्पष्ट करते हुये बताते हैं कि गुण और दोष, माया रचित है और इनकी कोई वास्तविक सत्ता नहीं हैं। गुण-दोष को नहीं देखना विवेक है जबकि इन्हें देखना अविवेक है।

जय सियाराम जय मेहेरामेहेर जय जिनेन्द्र सदा

Monday, August 19, 2024

मोक्ष या भक्ति

 🌻🌼🍀🌻🌼☘️

यह प्रसंग श्री रामचरित मानस जी से है। कई वर्षों पहले मनु तथा सतरूपा ने ईश्वर प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की। किंतु, उन्हें ईश्वर दर्शन नहीं हो पाये। तपस्या जब गहरी, और गहरी होती चली जा रही थी उस समय आकाशवाणी हुई कि आप दोनों कई वर्षों के बाद जब त्रेता युग में अयोध्या नामक नगरी में महाराज दशरथ तथा माता कौशल्या के रूप में निवास करेंगे तब भगवान साक्षात् रूप में आपके घर जन्म लेंगे। 


अयोध्या नगरी में महाराजा दशरथ तथा माता कौशल्या के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में भगवान ने राम के रूप में जन्म लिया। किंतु महाराजा दशरथ को अपने पुत्र से मोह हो गया तथा वह उन्हें ईश्वर के रूप में पहचान नहीं पाये। 


कालांतर में जब भगवान राम, लंका जीत कर और सीता जी को लेकर अयोध्या वापस आये तब सभी देवी, देवता, अयोध्या नगरी के निवासी, तथा अन्य जीव  भगवान के दर्शन करने के लिये आये। इनके साथ भगवान राम के पिता महाराजा दशरथ जी भी सूक्ष्म रूप में भगवान राम के दर्शन करने के लिये आये।


भगवान राम ने अपने पिता को सूक्ष्म रूप में देख उन्हें भक्ति प्रदान की, तब जाकर महाराजा दशरथ ने अपने पुत्र राम में भगवत् रूप के दर्शन प्राप्त किये।


इसी प्रकार, एक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु, महर्षि नारद जी से बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने महर्षि नारद जी से कहा कि आज मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूँ, आप जो चाहे मुझसे माँग सकते हैं। किंतु, महर्षि नारद जी ने भगवान विष्णु से कुछ भी न माँगा। भगवान विष्णु ने महर्षि नारद जी से बार-बार  माँगने को कहा। किंतु, महर्षि नारद जी बार-बार मना करते रहे। तब, भगवान विष्णु ने कहा कि महर्षि नारद जी मेरे बार-बार आपसे माँगने को कहने के बाद भी जब आप कुछ नहीं माँग रहे हैं तो आज मैं आपको अपनी ओर से, सबसे अनमोल वस्तु देता हूँ, और वह है कैवल्य अर्थात मोक्ष। इतना सुनना था कि महर्षि नारद जी, भगवान विष्णु के चरणों में गिर पड़े और विनती करने लगे कि वह उन्हें मोक्ष बिल्कुल भी न दें, अन्यथा वे भगवान विष्णु की भक्ति कैसे कर पायेंगे।


द्वैत जगत में भक्ति के मार्ग से ईश्वर के साकार रूप के दर्शन महर्षि नारद निरंतर कर रहे थे और वह इस भक्ति को ही सर्वोपरि मानते थे। यहाँ तक की उन्होंने इस भक्ति के लिये मोक्ष को भी त्याग दिया।

पुनश्च: : इस कथा को पूर्ण तथा व्यवस्थित करने के लिये हमारे परम मित्र आदरणीय एम.के.मिश्रा जी जो बहुत-बहुत धन्यवाद।


आदरणीय सुधिजन,
सादर प्रियतम अवतार मेहेरबाबा की जय जय जिनेन्द्र सदा,

आपसे विनम्र आग्रह है कि कृपया लेख के बारे में अपने अमूल्य विचार और सुझाव कमेंट बॉक्स में अंकित कर प्रोत्साहित करने का कष्ट करें,

सादर जय प्रियतम अवतार मेहर बाबा जय जिनेंद्र सदा

🙏🏻🌈🌈😇😇🙏🏻

Thursday, July 11, 2024

गोविन्दगढ़ के आम और प्रकृति विकास

बाघेला राजवंश की स्थापना महाराज व्याघ्र देव जी ने सन् 1234 ईस्वी में की थी। बघेल मूल रूप से चालुक्य थे, जो गुजरात के अनहिलवाड़ा के सोलंकी वंश के थे । 


बघेलखण्ड क्षेत्र में बघेल वंश की स्थापना भीमलदेव ने 1236 ई. में गहोरा (वर्तमान चित्रकूट) में की थी। सन् 1605 के बाद महाराज विक्रमजीत/विक्रमादित्य बघेल (1593-1624) ने अपनी राजधानी रीवा को बनाया।


बघेल राजवंश के महाराज रघुराज सिंह जी (1854-1880), महाराज विश्वासनाथ सिंह जी के सुपुत्र, बहुत ही सुंदर व्यक्तित्व के स्वामी थे। 


उदयपुर राज्य की राजकुमारी भी बहुत ही सुंदर थीं जिनका नाम था 'हर हाईनेस सोभाग कुमारी जी' जो कि उदयपुर महाराज महाराणा प्रताप सिंह जी के परपोते महाराणा सरदार सिंह जी की बेटी थीं। 


रीवा की प्रचलित लोककथा के अनुसार यह बात सन् 1851 की है जब राजकुमारी जी का स्वयंवर होने वाला था। इस बात की खबर महाराज साहब को मिली किन्तु निमंत्रण नहीं मिला। फिर भी महाराज साहब ने फैसला किया कि वे स्वयंवर में ज़रूर शामिल होंगे। वे पूरी तैयारी के साथ, सजे-धजे हाथी पर सवार हो कर जब राजकुमारी के महल के बाहर पहुँचे, तो राजकुमारी जी ने बाँके और सजीले महाराज साहब को झरोखे से देख कर मन ही मन उन्हें पसंद कर लिया।


किन्तु जब उन्हें पता लगा कि महाराज साहब को स्वयंवर में शामिल होने के लिये निमंत्रित नहीं किया गया है तो वे निराश हो गईं। किन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कोशिश कर के महाराज साहब को भी स्वयंवर में निमंत्रित करवा लिया। स्वयंवर में राजकुमारी जी ने महाराज साहब का वरण किया और अब वे बन गईं  'हर हाईनेस महारानी सोभाग कुमारी जी'।


विवाह के उपरांत नवविवाहित जोड़े ने, गोविंदगढ़ को अपना निवास स्थान बनाया, जहाँ महाराज रघुराज सिंह जी का महल और किला था। 


गोविंदगढ़ उस समय रूखा-सूखा सा स्थान था।इस स्थान को देख कर नवविवाहिता महारानी साहिबा नाखुश हुईं । इस बात को देख कर महाराज साहब ने सारे कार्यों को रोक कर पाँच वर्ष में गोविन्दगढ़ में विशालकाय तालाब खुदवाया जिसकी अपनी झिर थी, जिस कारण यह तालाब कभी सूखता नहीं था। इस तालाब के कारण गोविंदगढ़ क्षेत्र को सिंचाई जल उपलब्ध हो गया और देखते ही देखते रीवा रियासत की सबसे उपजाऊ भूमि (अधिकतर काली और दोमट मृदा) हरीभरी हो गई। कृषि तथा खेतिहर किसानों के रोज़गार को भी बढ़ावा मिला। 


महारानी साहिबा की वृक्षारोपण में विशेष रुचि थी। अतः तालाब के समीप ही गोविंदगढ़ का प्रसिध्द, आम का बाग स्थापित किया गया जिसके फल तालाब से मिलने वाली नमी के कारण, बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। लखनऊ और हरदोई (उ.प्र.) के मध्य मलीहाबाद में स्थापित प्रसिद्ध आम के बागों के फल की तरह ही, गोविन्दगढ़ के आम आज भी बहुत पसंद किये जाते हैं।


गोविन्दगढ़ का सुन्दरजा आम, सभी अन्य आम की क़िस्मों के बीच अपना विशिष्ट स्थान रखता है और बहुत प्रसिद्ध है।यह तथ्य इसी बात से स्पष्ट होती है कि भारत शासन के पोस्टल विभाग ने सन् 1968 में सुन्दरजा आम का पोस्टल स्टैम्प निकाला और पिछले वर्ष सन् 2023 में ग्वालियर की गजक के साथ आम की इस किस्म को जी.आई. टैग भी मिल चुका है और यह रीवा ज़िले की पहचान बन चुका है।


अच्छी बात यह है कि जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.) के रीवा, कुठुलिया में, कृषि महाविद्यालय के अंतर्गत स्थापित फल अनुसंधान केंद्र अन्य किस्मों के साथ सुन्दरजा किस्म का भी संरक्षण और संवर्धन कर रहा है।


रीवा रियासत के और विकास हेतु महाराजा गुलाब सिंह (1918-46) द्वारा रीवा रियासत की अपनी और तमाम भूमि स्वामियों की जमीनों का अधिग्रहण कर 1652 एकड़ के बड़े क्षेत्र में टोंस नदी से निकली लीलझी नदी के ऊपर लिलजी बाँध बनवाया जिसका कैचमेंट क्षेत्र 445 किलोमीटर था। इस बाँध से कई नहरें निकाली गईं, जिससे इस क्षेत्र के कृषि कार्य को और भी लाभ हुआ।


रीवा राज्य की एक और विश्व प्रसिद्ध पहचान है। मई 27, सन् 1951 में सीधी ज़िले के बरगाड़ी क्षेत्र के जंगल में तत्कालीन महाराज मार्तण्ड सिंह जी को सफेद शावक मिला, जिसका नाम मोहन रखा गया तथा मोहन का बाड़ा गोविंगढ़ के किले में बनाया गया जहाँ इसे रखा गया और मोहन की संतति प्रवर्धन की दिशा में भी अद्वितीय प्रयास किया गया।

Tuesday, November 28, 2023

श्रीरामचरित मानस से: महर्षि वाल्मीकि- भरत संवाद

दोहा:

सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ। 

हानि लाभ जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ।।


*अर्थात्:* महर्षि वाल्मीकि कहते हैं कि भावी बहुत प्रबल होती है, हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश सब ईश्वर के हाथ में होता है ( *अर्थात्*  इन सब पर मनुष्य का कोई बस नहीं है, यदि कुछ बस में है तो वह है कर्तव्य निर्वहन)।


यह दोहा अयोध्या कांड से है जब भरत जी अपने ननिहाल ले लौट कर अयोध्या में घटी घटनाओं के बारे में जानकर अत्यंत दुखी और विचलित हो जाते हैं। पिता का संस्कार करने के बाद महर्षि वाल्मीकि उनसे कहते हैं कि तुम्हारे पिता ने वचन निभाने के लिये अपने प्राण त्याग दिये। 


उन्होंने अयोध्या का राज तुम्हें दिया है अतः किसी भी प्रकार की सोच न करो। सोच तो उनके बारे में करनी चाहिये जो अनुचित तथा अमर्यादित कार्य और व्यवहार करते हैं। तुम्हारे पिता को तो सद्गति प्राप्त हुई है। अपनी पिता की इच्छा का सम्मान कर जो तुम्हारा कर्तव्य है उसे निभाओ। जो पिता की आज्ञा का पालन करते है उन्हें पाप नहीं लगता है और उन्हें अपयश नहीं मिलता बल्कि वे सुख और सुयश के भागी होते हैं और इन्हें इंद्रपुरी (स्वर्ग) मिलता है।

 *जय सियाराम जय जिनेन्द्र जय मेहेरामेहेर सदा* 

🙏🌈🌈🙏

Saturday, November 25, 2023

श्रीरामचरित मानस से:प्रभु राम के दर्शन

 🌻🌼🍀🌻🌼☘️ 

पूज्यनीय गोस्वामी तुलीदास जी कृत श्रीरामचरित मानस के बाल कांड में शिवपार्वती संवाद में दी गई यह सुंदर चौपाई की पंक्तियाँ हैं -

🍥🍭🍥🍭🍥🍭

 *हुई है वही जो राम रखि राखा।*

*को कर तर्क बढ़ावे साखा।।* 

🌷🍬🌷🍬🌷🌷

यह सुंदर पंक्तियाँ उद्धृत  कर रही हैं कि मनुष्य के अहंकार का कोई मोल नहीं है, जिस कारण वह विचार करता है कि कर्ता वह स्वयं है तथा इस सोच के कारण वह कर्ता भाव में रह कर ईश्वर तथा ईश्वर कृपा से वंचित रह जाता है। परम धाम उसकी नियति है किंतु वह जन्मजन्मांतर भटकता रह जाता है।


पंक्तियाँ, मार्ग प्रशस्त करती हैं कि अहंकार त्याग कर, ईश्वर के प्रति प्रेमवश हो उसका भरोसा करें कि कर्ता तो वही हैं। 


ईश्वर पर यह भरोसा,  उससे प्रेम होने के उपरांत ही सम्भव होता है। इसीलिये प्रभु राम को प्रेम प्यारा है।


भगवान कहते हैं कि कलयुग में मुझे प्राप्त करने का मात्र प्रेम ही एकमात्र मार्ग है।


प्रेम हृदय में उपजता है, बुद्धि तर्क करती है, इसलिये यह पंक्तियाँ तर्क करने से रोकती हैं। क्योंकि जब तक बुद्धि को विराम नहीं मिलता, तब तक हृदय में विराजे प्रभु राम  से साक्षात्कार नहीं होता।

प्रभु राम के साक्षात दर्शन तो प्रेम से ही होंगे।


 *जहाँ भरोसा है, वहाँ भय नहीं।* 

 *सादर -* 

 *जय सियाराम जय मेहेरामेहेर जय जिनेन्द्र सदा*

🙏🌈🌈😇😇🙏

श्रीरामचरित मानस से (भगवान को केवल प्रेम प्यारा है)

 🌻🌼🍀🌻🌼☘️

श्रीरामचरितमानस के अयोध्या कांड में वर्णन है कि भगवान श्रीरामचंद्रजी, सीतामाता और लक्ष्मण जी ने चित्रकूट में रहना प्रारम्भ किया।

यहाँ आपके दर्शन करने के लिये वन में रहने वाले भील और कोल आये तथा भगवान से सेवा करने का उन्होंने आग्रह किया तब भगवान ने अपने प्रेम से वनवासियों को संतुष्ट किया।

इसी प्रसंग से निम्नलिखित सुंदर पंक्तियाँ हैं जिनके अनुसार भगवान राम को केवल प्रेम प्यारा है।


*चौपाई:* 

रामहि केवल प्रेमु पियारा।

जानि लेउ जो जान निहारा।। 

राम सकल बनचर तब तोषे।

कही मृदु वचन प्रेम परिपोषे।।


*अर्थात:* 

श्री रामचंद्र भगवान को केवल प्रेम ही प्यारा है जो जानने वाला हो (जानना चाहता हो) वह जान ले। तब श्रीरामचंद्रजी ने प्रेम से परिपुष्ट हुए (प्रेमपूर्ण) कोमल वचन कहकर उन सब वन में विचरण करने वाले लोगों को संतुष्ट किया

जय सियाराम जय मेहेरामेहेर सदा

🙏😇😇🌈🌈🙏

श्रीरामचरित मानस से: भगवान श्रीरामचंद्र जी का निवास स्थान

 🙏🌈🌈😇😇🙏

*जय सियाराम, जय मेहेरामेहेर सदा* 


जाति पाँति धनु धरमु बड़ाई। 

प्रिय परिवार सदन सुखदाई।।


सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई। 

तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई।।


 *अर्थात-* 

जाति, पाति, धन, धर्म, बड़ाई, प्यारा परिवार और सुख देनेवाला घर- सबको छोड़कर जो केवल आपको ही हृदय में धारण किये रहता है, हे रघुनाथ जी ! आप उसके हृदय में रहिये।।


यह बेहद महत्वपूर्ण और सुंदर दोहा, श्रीरामचरित मानस के अयोध्या कांड से है।


भगवान सियाराम, लक्ष्मण जी सहित, वन गमन करते हुये महर्षि वाल्मीकि जी के आश्रम पहुँचते हैं।  


यहाँ भगवान राम, महर्षि वाल्मीकि से पूछते हैं कि इस वन में हम कहाँ रहें। 


तब, महर्षि वाल्मीकि जी कहते हैं 

'जो जाति पाँति, धन, धर्म को छोड़ कर आपको हृदय में धारण करते हैं, आप उसके हृदय में रहिये'

🌷🍬🌷🍬🌷🍬


दीपावली की ढेर सारी बधाईयाँ और शुभकामनायें !!!


🍥🍭🍥🍭🍥🍭

 *जय सियाराम, जय मेहेरामेहेर सदा* 

🙏😇😇🌈🌈🙏

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