बाघेला राजवंश की स्थापना महाराज व्याघ्र देव जी ने सन् 1234 ईस्वी में की थी। बघेल मूल रूप से चालुक्य थे, जो गुजरात के अनहिलवाड़ा के सोलंकी वंश के थे ।
बघेलखण्ड क्षेत्र में बघेल वंश की स्थापना भीमलदेव ने 1236 ई. में गहोरा (वर्तमान चित्रकूट) में की थी। सन् 1605 के बाद महाराज विक्रमजीत/विक्रमादित्य बघेल (1593-1624) ने अपनी राजधानी रीवा को बनाया।
बघेल राजवंश के महाराज रघुराज सिंह जी (1854-1880), महाराज विश्वासनाथ सिंह जी के सुपुत्र, बहुत ही सुंदर व्यक्तित्व के स्वामी थे।
उदयपुर राज्य की राजकुमारी भी बहुत ही सुंदर थीं जिनका नाम था 'हर हाईनेस सोभाग कुमारी जी' जो कि उदयपुर महाराज महाराणा प्रताप सिंह जी के परपोते महाराणा सरदार सिंह जी की बेटी थीं।
रीवा की प्रचलित लोककथा के अनुसार यह बात सन् 1851 की है जब राजकुमारी जी का स्वयंवर होने वाला था। इस बात की खबर महाराज साहब को मिली किन्तु निमंत्रण नहीं मिला। फिर भी महाराज साहब ने फैसला किया कि वे स्वयंवर में ज़रूर शामिल होंगे। वे पूरी तैयारी के साथ, सजे-धजे हाथी पर सवार हो कर जब राजकुमारी के महल के बाहर पहुँचे, तो राजकुमारी जी ने बाँके और सजीले महाराज साहब को झरोखे से देख कर मन ही मन उन्हें पसंद कर लिया।
किन्तु जब उन्हें पता लगा कि महाराज साहब को स्वयंवर में शामिल होने के लिये निमंत्रित नहीं किया गया है तो वे निराश हो गईं। किन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कोशिश कर के महाराज साहब को भी स्वयंवर में निमंत्रित करवा लिया। स्वयंवर में राजकुमारी जी ने महाराज साहब का वरण किया और अब वे बन गईं 'हर हाईनेस महारानी सोभाग कुमारी जी'।
विवाह के उपरांत नवविवाहित जोड़े ने, गोविंदगढ़ को अपना निवास स्थान बनाया, जहाँ महाराज रघुराज सिंह जी का महल और किला था।
गोविंदगढ़ उस समय रूखा-सूखा सा स्थान था।इस स्थान को देख कर नवविवाहिता महारानी साहिबा नाखुश हुईं । इस बात को देख कर महाराज साहब ने सारे कार्यों को रोक कर पाँच वर्ष में गोविन्दगढ़ में विशालकाय तालाब खुदवाया जिसकी अपनी झिर थी, जिस कारण यह तालाब कभी सूखता नहीं था। इस तालाब के कारण गोविंदगढ़ क्षेत्र को सिंचाई जल उपलब्ध हो गया और देखते ही देखते रीवा रियासत की सबसे उपजाऊ भूमि (अधिकतर काली और दोमट मृदा) हरीभरी हो गई। कृषि तथा खेतिहर किसानों के रोज़गार को भी बढ़ावा मिला।
महारानी साहिबा की वृक्षारोपण में विशेष रुचि थी। अतः तालाब के समीप ही गोविंदगढ़ का प्रसिध्द, आम का बाग स्थापित किया गया जिसके फल तालाब से मिलने वाली नमी के कारण, बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। लखनऊ और हरदोई (उ.प्र.) के मध्य मलीहाबाद में स्थापित प्रसिद्ध आम के बागों के फल की तरह ही, गोविन्दगढ़ के आम आज भी बहुत पसंद किये जाते हैं।
गोविन्दगढ़ का सुन्दरजा आम, सभी अन्य आम की क़िस्मों के बीच अपना विशिष्ट स्थान रखता है और बहुत प्रसिद्ध है।यह तथ्य इसी बात से स्पष्ट होती है कि भारत शासन के पोस्टल विभाग ने सन् 1968 में सुन्दरजा आम का पोस्टल स्टैम्प निकाला और पिछले वर्ष सन् 2023 में ग्वालियर की गजक के साथ आम की इस किस्म को जी.आई. टैग भी मिल चुका है और यह रीवा ज़िले की पहचान बन चुका है।
अच्छी बात यह है कि जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.) के रीवा, कुठुलिया में, कृषि महाविद्यालय के अंतर्गत स्थापित फल अनुसंधान केंद्र अन्य किस्मों के साथ सुन्दरजा किस्म का भी संरक्षण और संवर्धन कर रहा है।
रीवा रियासत के और विकास हेतु महाराजा गुलाब सिंह (1918-46) द्वारा रीवा रियासत की अपनी और तमाम भूमि स्वामियों की जमीनों का अधिग्रहण कर 1652 एकड़ के बड़े क्षेत्र में टोंस नदी से निकली लीलझी नदी के ऊपर लिलजी बाँध बनवाया जिसका कैचमेंट क्षेत्र 445 किलोमीटर था। इस बाँध से कई नहरें निकाली गईं, जिससे इस क्षेत्र के कृषि कार्य को और भी लाभ हुआ।
रीवा राज्य की एक और विश्व प्रसिद्ध पहचान है। मई 27, सन् 1951 में सीधी ज़िले के बरगाड़ी क्षेत्र के जंगल में तत्कालीन महाराज मार्तण्ड सिंह जी को सफेद शावक मिला, जिसका नाम मोहन रखा गया तथा मोहन का बाड़ा गोविंगढ़ के किले में बनाया गया जहाँ इसे रखा गया और मोहन की संतति प्रवर्धन की दिशा में भी अद्वितीय प्रयास किया गया।