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महाविद्यालयों की कक्षाओं में, विद्यार्थियों की कम होती उपस्थिति एक विचारणीय विषय बनता जा रहा है । ऐसा प्रतीत होता है कि ऑन लाईन संसाधन, जैसे गूगल, यू-ट्यूब और अब ए. आई. (आर्टिफिशियल इंटैलिजैन्स) मंच, छात्रों को, पाठ्यक्रम के अध्ययन के लिये पर्याप्त लगते हैं । बचे हुये समय को वे नौकरी के लिये प्रतियोगी परीक्षाओं और साक्षात्कार की तैयारी में लगाना अधिक उपयोगी समझते हैं ।
कुछ ऐसा करें कि छात्र खुशी-खुशी।कक्षा में आयें:
नियमानुसार, कक्षा में पचहत्तर प्रतिशत उपस्थिति की अनिवार्यता के बल पर छात्रों को कक्षाओं तक लाया तो जा सकता है किंतु, शायद, स्थिति वही बेहतर हो कि वे स्वप्रेरित हो कर कक्षाओं में खुशी-खुशी आयें।
कक्षा का वातावरण और शिक्षा:
छात्रों को कक्षा में बुलाने के लिये कक्षा के वातावरण और शिक्षा प्रदान करने की पद्धति दोनों में सुधार और संयोजन करने की आवश्यकता है, जिसके लिये, आधुनिक संचार क्रांति के संसाधनों के इस दौर में, कक्षा, शिक्षा और शिक्षक की भूमिका तथा इनके परस्पर संयोजन को समझना बहुत ज़रूरी हो गया है।
ज्ञान और सूचना में अंतर होता है:
विषय को, सूचना नहीं बल्कि ज्ञान के रूप में जानना, समझना, आत्मसात करना और उपयोग कर पाना ही शिक्षा है । शिक्षा की एक बहुत ही सुंदर परिभाषा इलाहाबाद कृषि संस्थान के प्रशासनिक भवन के बाहरी दीवार पर बड़े-बड़े अक्षरों में अंकित है । यह परिभाषा कहती है कि ‘शिक्षा मनुष्य की प्रवृत्ति को मुक्त करने की लिये है’ । मनुष्य की प्रवृत्ति मूल रूप से पाश्विक है किन्तु ज्ञान के माध्यम से, विवेक जागृत कर, वह इस प्रवृत्ति से मुक्त हो सकता है।
ऑन लाईन मंच, विषय के बारे में जानकारी और सूचनायें तो देती हैं किंतु यह ज्ञान प्रदान नहीं कर पातीं क्योंकि यह मंच अनुभव साझा नहीं करते। सूचना और जानकारी जब अनुभव के साथ सम्मिश्रित होता है तब यह ज्ञान का स्वरूप प्राप्त करता है ।
ज्ञान हस्तांतरित करने के पूर्व, उपस्थित छात्रों की, विषय संबंधी सामूहिक समझ के स्तर को समझना और इस स्तर के अनुसार शिक्षित करना बेहतर होगा । शिक्षक और छात्र के मध्य स्थापित भावनात्मक सेतु भी छात्रों द्वारा ज्ञान को ग्रहण करना सुगम्य बनाता है । इसी तरह ज्ञान का सम्प्रेषण और प्रभावी हो जाता है यदि शिक्षक का व्यक्तित्व आकर्षक और प्रेरक हो साथ ही शिक्षक ज्ञानी हो ।
शिक्षक को ऑंलाईन मंच से एक कदम आगे रहना पड़ेगा, उन्हें नवीनतम शोध का अध्ययन करना होगा, नवाचारी और रचनात्मक होना होगा ।
कक्षा से कार्यशाला की ओर:
वर्तमान परिदृश्य में कक्षा को कार्यशाला में परिवर्तित करना होगा जहाँ शिक्षा देना ही मात्र उद्देश्य नहीं होगा बल्कि शिक्षा के साथ कौशल संवर्धन भी आवश्यक हो जिससे कार्यशाला का रूप धारण की हुई कक्षा छात्रों के लिये अधिक रोचक होगी और वे कक्षा में उपस्थित होने के लिये तत्पर होंगे जहाँ वे ज्ञान विज्ञान को अपने अनुभव के साथ सीखेंगे। पाठ्यक्रम में प्रायोगिक कक्षाओं पर अधिक बल देना भी छात्र-छात्राओं को एक ओर अधिक सीखने का मौका देगा वहीं इन्हें कक्षा में उपस्थित होने का कारण भी देगा ।
कक्षा को रोचक बनायें:
ष्टि आई.ए.एस. के फाऊंडर और शिक्षक कहते हैं कि छात्रों को लंबे समय तक कक्षा में बाँध कर रखना आसान नहीं होता है । शिक्षक को अपनी गरिमा रखते हुये, छात्रों के स्तर पर आ कर विभिन्न रोचक कथाओं, प्रसंगों और चुटकुलों के माध्यम से भी कक्षा का वातावरण मज़ेदार बना कर रखना पड़ता है । तो शिक्षकों को स्वयं और कक्षा के वातावरण को बदलना सीखना होगा उसे शिक्षा प्रदान करने के नये उपकरणों का उपयोग सीखना होगा और सबसे बड़ी बात उसे इस प्रक्रिया में आनंद ढूँढना होगा।
चलते हैं स्मरण से कौशल संवर्धन की ओर:
कहते हैं कि परिवर्तन को छोड़ सब परिवर्तनीय है अर्थात परिवर्तन स्थायी है। तेज़ी से बदलते शैक्षणिक जगत के बारे में प्रख्यात शिक्षाविद प्रो.एस. व्ही.आर्य कहते हैं कि रोज़ कुछ न कुछ पढ़ते रहें सीखते रहें ताकि आप प्रासंगिक रहें। बदलते ज्ञान और शिक्षा जगत में रत शिक्षक और छात्रों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि अब स्मरण का कार्य करने के लिये कम्प्यूटर है किंतु उन्हें इस ज्ञान का उपयोग करना अच्छी तरह सीखना होगा अर्थात अब ज्ञानार्जन, स्मरण के बजाय कौशल संवर्धन की ओर हो गया है ।
कार्य कुशलता और कार्य दक्षता का महत्व:
ध्यान दें कि एक नौकरी ढूँढ रहे उम्मीदवार की कीमत उसकी कार्यदक्षता अथवा कार्य कुशलता ही है न कि उसे प्राप्त उपाधियाँ अथवा डिग्रियाँ। हाँलाकि कार्य कुशलता अथवा कार्य दक्षता प्राप्त करने की पहली सीढ़ी विषय सम्बन्धी ज्ञान ही होता है। पूर्व में मल्टीटास्किंग (कई कार्यों को एक साथ करने की क्षमता) करने वाले एम्प्लॉई (कर्मचारी) को पसंद किया जाता था किंतु आज फिर विषय विषेज्ञता को ही पसंद किया जा रहा है जिसके लिये ज्ञान, कुशलता / दक्षता का संगम आवश्यक है।
ज्ञानेन्द्रियाँ और सीखने की प्रक्रिया:
कहते हैं कि, पाँच ज्ञानेंद्रियों, दृष्टि (चक्षु अथवा आँख), कर्ण (सुनना), स्पर्श (त्वचा, छूना), रसना (जिव्हा), नासिका (नाक, सूंघना) में से जितनी अधिक से अधिक इंद्रियों का उपयोग सीखने में किया जाये उतना ही पक्के रूप से किसी भी ज्ञान को सीखा जा सकता है। इसी बात के लिये एक प्रसिद्ध कहावत है कि अगर हम सिर्फ सुनेंगे तो भूल जायेंगे, अगर हम सुनेंगे और देखेंगे तो याद रखेंगे, अगर हम सुनेंगे, देखेंगे और कर के देखेंगे (अनुभव प्राप्त करना)
तो सीखेंगे (If I hear, I will forget, If I see I will remember, If I do I will learn.)
ऑनलाईन मंच इन बिन्दुओं में गौण रह जाता है। यह मंच तो बस विषय को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं और विषय को समझना और आत्मसात करने की पूरी ज़िम्मेदारी छात्र की स्वयं होती है । छात्र-छात्राओं को यह समझना होगा कि याद रखने में और सीखने में अंतर होता है। इस लेख में पूर्व में हमने देखा कि आपकी नियोक्ताओं के बीच आपकी माँग तो तभी बढ़ेगा जब आप अपनी कार्य कुशलता और दक्षता को बढायेंगे और इसे बढ़ाने के लिये आपको कक्षा में आना ही पड़ेगा।
ऑन लाईन मंच शिक्षा हेतु वरदान:
आवश्यक यह है कि ऑन लाईन मंच को चुनौती नहीं मानें बल्कि यह शिक्षक और विद्यार्थी के लिये ईश्वर का वरदान हैं । शिक्षा उपकरणों के उपयोग और ऑन लाइन मंचों के माध्यम से शिक्षा के आदान प्रदान को और भी अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है । इस तरह मिलेजुले प्रयासों से छात्रों को कक्षा की ओर फिर से उन्मुख किया जा सकता है क्योंकि यह मंच क़िताबों की तरह ही हैं, ऑन लाईन लाईब्रेरी हैं, शिक्षा तथा शिक्षण कार्य के लिये पूरक है ।
ईश्वर प्रदत्त बुद्धिमत्ता श्रेष्ठ:
लिखने की विधा नहीं थी तब, जब शिलाओं पर, पत्तों और कागज़ पर लिखा जाने लगा तब भी गुरु और शिक्षक उपयोगी थे और आज जब ऑन लाईन विषय का सृजन होने लगा तब भी शिक्षक और कक्षा की उपयोगिता और महत्व में कोई कमी नहीं आई है न कभी आयेगी । आखिर ए. आई. कृत्रिम बुद्धिमत्ता ही है ईश्वर प्रदत्त बुद्धिमत्ता नहीं है। ए.आई.वहीं तक सीमित है जितना मनुष्य ने उसे सीखा दिया किन्तु मनुष्य की रचना तो असीमित ईश्वर ने की है। प्रियतम अवतार मेहेरबाबा कहते हैं कि बुद्धिमत्ता से कहीं आगे है अंतर्ज्ञान (इन्ट्यूशन), प्रेरणा (इंस्पिरेशन) और प्रेम (लव)। प्रियतम बाबा आगे बताते हैं कि हमारी गैलेक्सी, 'मिल्की-वे' में 18000 (अट्ठारह हज़ार) धरतियाँ ऐसी हैं जहाँ जीवन है। अन्य धरतियों के लोग बुद्धि में हमारी धरती के लोगों की तुलना में बहुत आगे हैं किंतु उनमें भावना की बहुत कमी है। भावना और बुद्धि का पूर्ण सन्तुलन सिर्फ हमारी धरती के मनुष्यों में ही है। आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए. आई.) जितनी भी बढ़ जाये किन्तु शिक्षक और छात्र के बीच के भावनात्मक रिश्ते, छात्रों को कक्षा में अवश्य ले आयेंगे।
सादर
प्रियतम अवतार मेहेरबाबा की जय जय जिनेन्द्र सदा
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सादर
जय प्रियतम अवतार मेहर बाबा जय जिनेंद्र सदा
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