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प्रियतम अवतार मेहेरबाबा कहते हैं कि संस्कारों के कारण ही जीव पुनर्जन्म के चक्र में रहता है। यह संस्कार बेड़ियाँ हैं। बुरे संस्कार लोहे की बेड़ियाँ हैं तो अच्छे संस्कार सोने की बेड़ियाँ। ईश्वर से एकाकार करने के लिये दोनों ही प्रकार के संस्कारों से छुटकारा पाना आवश्यक है, जिसकी कुंजी विचारों को आने से रोकने में है।
मन में आये विचार, बोले गये वचन और काया से किये गये कर्म से संस्कारों का निर्माण होता है। बोले गये वचन और किये गये कर्म का आधार विचार ही होता है। विचार को ही रोक लिया जाये तो यह वचन अथवा कर्म में परिवर्तित नहीं हो पायेंगे।
विचारों के कारण उत्पन्न कर्म न्यून बल के होते हैं, वचन के कारण उत्पन्न संस्कार मध्यम बल के तथा कर्म के कारण उत्पन्न संस्कार अधिक बल के होते हैं।
न्यून बल के संस्कार को समाप्त करना सरल होता है, मध्यम बल के संस्कार को समाप्त करना थोड़ा कठिन और किये गये कर्म के कारण उत्पन्न अधिक बल के संस्कार को समाप्त करना सबसे कठिन होता है।
अच्छा हो कि इन संस्कारों को निर्मित ही न होने दें।
प्रियतम अवतार मेहेरबाबा कहते हैं कि निरन्तर मेरा नाम सुमिरन करें जो कि विचारों को दूर रखने में उसी प्रकार सहायक होगा जैसे मच्छर को दूर रखने के लिये मच्छरदानी सहायक होती है।
*सादर*
*प्रियतम अवतार मेहेरबाबा की जय जय जिनेन्द्र सदा*
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सादर प्रियतम अवतार मेहेरबाबा की जय जय जिनेन्द्र सदा,
आपसे विनम्र आग्रह है कि कृपया लेख के बारे में अपने अमूल्य विचार और सुझाव कमेंट बॉक्स में अंकित कर प्रोत्साहित करने का कष्ट करें,
सादर जय प्रियतम अवतार मेहर बाबा जय जिनेंद्र सदा
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ReplyDeleteसादर जय प्रियतम अवतार मेहर बाबा जय जिनेंद्र सदा