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Thursday, November 19, 2009

ऐटिट्य़ूड कहें या नज़रिया (भाग-2)

दूरदर्शन का वो ज़माना याद आता है जब प्राइवेट चैनलॉ का आगमन नहीं हुआ था. बड़े शौक से शनिवार के शाम को बच्चों का कार्यक्रम फ्रैगल रॉक देखा करते थे.
खूब अच्छे से याद है, कचड़े में रहने वाले इन जीवों में से एक, इक बार निकल कर शहर आता है और लौट कर अपने दोस्तों को अपना अनुभव सुनाते हुए बताता है कि शहर में मनुष्य जब छाता खोलता है तो पानी बरसता है.
छाता खोलने के कारण पानी बरसता है या पानी बरसने पर छाता खोलते हैं इंसान की अपनी समझ भी किसी घटना या व्यक्ति के प्रति दृष्टिकोण तय करती है.

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Jai Baba to You
Yours Sincerely
Chandar Meher

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