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Sunday, October 18, 2009

दो पाटन के बीच में.......

एक दिन एक कुत्ता जंगल में रास्ता भूल गया। तभी उसने देखा, एक शेर उसकी तरफ बढ़ा आ रहा है। कुत्ते की जान सूख गई, उसने सोचा आज तो काम तमाम हुआ मेरा।  

अचानक कुत्ते की निगाह सामने पड़ी सूखी हड्डियों पर पड़ी, देखते ही कुत्ते के मन में विचार कौंधा । उसने यूं जाहिर किया मानो शेर को उसने देखा ही नहीं है, वह उसकी तरफ से मुंह फेर कर सूखी हड्डि़यों के ढेर की ओर चल दिया  और उनमें से एक हड्डी को चबाने लगा। हड्डी को चूसते हुए वो दिखावटी मज़े  में  कहता जा रहा था,
वाह! शेर को खाने का आनंद ही कुछ और है। एक और मिल जाए तो पूरी दावत ही हो जाए। यह कह कर उसने जोर से डकार ली।

यह नज़ारा देख शेर हैरत में पड़ गया। उसने सोचा,यह कुत्ता तो विलक्षण है ...शेर का शिकार करता है, उसकी हड्डी तक चबा डाली। इससे बचना तो मुश्किल है। अच्छा हुआ जो इसकी निगाह मुझ पर नहीं पड़ी। भैया यहां से तो जान बचा कर भागो। यह सोचते ही  वह वहां से भाग खड़ा हुआ।

यह पूरा तमाशा, पेड- पर बैठा एक बंदर  देख रहा था। उसने सोचा, मौका अच्छा है। शेर को कुत्ते की कारस्तानी बता देता हूं। इस बहाने शेर अहसानमंद हो जाएगा और उससे दोस्ती भी हो जाएगी। रोज रोज शेर से जान बचाने की ज़हमत भी छूटेगी। उसने भी ताबड़तोड़ शेर का पीछा करना शुरू किया।
महाबली का ढोंग करते हुए कुत्ता कनखियों से आसपास का जायज़ा भी ले रहा था। बंदर की फ़ितना-तबीयत से वह वाक़िफ था। जैसे ही उसने बंदर को शेर के पीछे छलांगें लगाते देखा, उसे माजरा समझ में आ गया।

इस बीच बंदर, शेर को पूरा क़िस्सा बता चुका था कि किस प्रकार वह कुत्ते हाठों बुद्धु बन गया. शेर की ऐसी किरकिरी कभी न हुई थी, वह जोर से दहाड़ा और कहा, अभी बताता हूं उस कुत्ते के पिल्ले को। वो तो गया काम से..

कुत्ते ने जैसे ही बंदर के साथ शेर को लौटते देखा तो फिर अनजान बनते हुए वह जोर जोर से पंजे ज़मीन पर मारते हुए गुस्से में कहने लगा, इस बंदर की औलाद को गए एक घंटा हो गया।  एक शेर को तो फांस नहीं पाया और बड़ा चालाक बना फिरता है।

शेर की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी,  उसने घूर कर बन्दर को देखा. और सिर पर पाँव रख कर भाग खड़ा हुआ. और बन्दर धोबी का हो गया, न शेर का न कुत्ते का....

नैतिक शिक्षा-
१. हमारे आसपास भी ऐसे ही कई बंदर हैं। उनकी शिनाख्त ज़रूरी है।
२. हर मुश्किल हालात का सामना स्थिर चित्त  होकर करना चाहिए।  
     राह जरूर निकलती है।
३. दो पाटन के बीच में साबुत बचा ना कोई...

साभार:पंचतंत्र की कहानी,  श्री अजीत वाडनर्कर जी के फेसबुक प्रोफाईल से...

11 comments:



  1. इस कहानी में मैं कौन हूँ, यह तो बतलाया ही नहीं !
    उत्तम प्रस्तुति !

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  2. आप देवता हैं, मेरे प्रेरक हैं, अतिथि देवो भवः...दीवाली मुबारक हो, प्रेरणा के लिये शुक्रिया... इसी तरह पधारते रहिये...आपका हमेशा स्वागत है...
    सस्नेह..आपका ही....चन्दर मेहेर

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  3. एक और सीख मिलती है।

    समस्‍या को दूर होते देखकर बेफिक्र नहीं हो जाना चाहिए कि वह परमानेंटली टल गई है। समस्‍या पलटकर फिर आती है और उसकी बैकअप प्‍लानिंग साथ रखी जाए...

    - आनंद

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  4. शुक्रिया आनन्द सर और अजीत जी....

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  5. Wah bandhu ,kamal kar rahe ho aap aajkal. Congrats for such good story.
    Likhte rahiye ,maja aaraha hai.
    aapka hi ,
    dr.bhoopendra

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  6. Thank You, Bhupendra Sir, Merry christmas and Very Happy New Year to You!!!
    Regards
    Chandar Meher

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  7. TRUE LEARNING FOR LIFE

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    1. Thank You Manoj Ji... Please keep visiting.
      Regards
      Chandar

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  8. wow mazaaa gaya sai mein ye to bhot mazedaar aur shikshaprad kahaani hai.....thanks

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  9. बहुत बहुत धन्यवाद सर आपके प्रेरक शब्दों के लिये, सादर जय बाबा जय जिनेंद्र सर 🌻🌻

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Your welcome on this post...
Jai Baba to You
Yours Sincerely
Chandar Meher

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