
इस बारे में सुनीता के घर के पास ही रहने वाले वासुदेव को पता लगा. वासुदेव ने सुनीता से यह मणि सुनीता से माँगी. सुनीता ने खुशी-खुशी वह मणी वासुदेव को दे दी. वासुदेव इस मणि को ले कर अपने घर चला आया.
जब रहा न गया तो कुछ दिन बाद वासुदेव फिर सुनीता से मिलने जा पहुँचा. वासुदेव ने सुनीता से कहा कि इतनी अमूल्य मणि तुमने बिना झिझके ही बड़ी सरलता से मुझे दे दी. मुझे लगता है इससे भी कोई ज़्यादा कीमती मणि तुमहारे पास है. तुम मुझे वो मणि दे दो और यह मणि वापस ले लो.
यह बात सुनकर सुनीता मुस्कुरा उठी, वह बोली कि मेरे पास इस मणि से भी ज़्यादा कीमती मणि तो है पर वह मणि मैं तुम्हें दे नहीं सकती. मुझे तो लगता है कि वह मणि तुम्हें कोई भी नहीं दे सकता. इस बात को सुन कर हैरान होते हुये वासुदेव् ने पूछा वो क्यों? इस पर सुनीता ने कहा कि वह मणि तो पहले से ही तुम्हारे पास है. बस उसे ढ़ूढ़्ने भर की देर है.
वासुदेव को और ज़्यादा हैरानी हुई. उसने पूछा कि ऐसी कौन सी मणि मेरे पास है जो मैं खुद नहीं जानता ?? सुनीता ने जवाब दिया-वासुदेव वह बहुत ही खास मणि है “मन की खुशी”, जो मझे मिली यह मणि तुम्हें दे कर जब तुम पहली बार मेरे पास आये थे !!!
साभार: यह कहानी मैंने अपने भतीजे दीपू से फेस बुक पर सुनी.
सच्ची खुशी एक ऐसी वस्तू है जिसे महसूस तो किया जा सकता है, बांटा भी जा सकता है लेकिन दिया नही जा सकता ।
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प्रिय सिंह साहब,
ReplyDeleteक्या खूब कहा है आपने. लाईफ मज़ेदार अर पधारने के लिये शुक्रिया...
यऐसे ही आए रहें हौसला अफज़ाई करते रहें....
अवतार मेहेर बाबा जी की जय
आपका ही
चन्दर मेहेर