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Saturday, July 8, 2017

तो समझें कि मोक्ष प्राप्त हुआ....

बड़े-बड़े ऋषि महर्षियों नें कर्म के सिद्धांत को अपने अपने ढंग से प्रतिपादित किया है. अभी कुछ दिन पूर्व एक ऐसी ही व्याख्या पढ़ने को मिली. इस निरूपण के अनुसार आम की बोई गई गुठली सदृश्य है गुणधर्म और सम्भावनाओं से परिपूर्ण एक इकाई की और इसे बोने का कार्य सदृश्य है किये गये कर्म के और जो पौधा तैयार होता है वह कर्म के कारण उत्पन्न संस्कार के जैसा है. जिस वातावरण में पौधा वृक्ष बनता है वह परिजनों का आश्रय और समाज द्वारा प्रदत्त दिशा होती है. जो फूल और फल लगते हैं वह सदृश्य होते है कर्म के स्वरूप प्राप्त परिणाम के. फल के सेवन के उपरांत मिली गुठली फिर बोई जाती है जो पुन: द्योतक है कर्म की. यह कर्म (गुठली का बोना) दो प्रकार से किया जा सकता है. प्रथम इंच्छा सहित जिससे संस्कार का निर्माण होता है द्वितीय इच्छारहित हो कर किया गया कर्म जो कि निष्काम कर्म है और ऐसा करने से संस्कार का निर्माण नहीं होता. तीसरी स्थिति वह है जहाँ  फल तो खाने की इच्छा है किंतु गुठली बोई ही न जाये यह है इच्छासहित कर्महीनता. यह स्थिति, परिणाम स्वरूप जीवन में न्यूनता प्रदान करती है.
गुठली रूपी इकाई से संस्कार रूपी पौधा पनपता है जो के गुठली के ही गुणधर्म को प्राप्त करता है यही गुणधर्म, परिणाम रूपी फूल और फल को प्राप्त होते हैं.  फिर परिणाम रूपी फल-फूल के उपयोग अथवा उपभोग के बाद पुन: गुठली रूपी अगली इकाई प्राप्त होती है जो कि आगामी संस्कार को फिर प्रभावित करती है.
समय पा कर उपलब्ध वातावरण और परिवर्तित होते वातावरण (परिवार और समाज) के कारण पौधा (संस्कार) प्रभावित होता है तथा उस पौधे में कभी-कभी परिवर्तन भी आता है जिसके कारण फूल-फल और उससे उपजी गुठली के गुणों में भी फर्क़ आता है. गुठली अनुकूल वातावरण पा कर परिवर्तित संस्कार को प्रकट करती है और विकास का क्रम प्रारम्भ होता है.   
यह चक्र चलता रहता है. इस चक्र में गुठली या बीज का बोना हमारे हाथ में है. हम किस फसल अथवा पौधे की गुठली अथवा बीज बोते हैं यह भी हमारे हाथ में हैं. यदि हम आम का बीज बोते हैं तो आम खाने मिलेगा और यदि बबूल बोते हैं तो काँटे ही मिलेंगे. 
इस चक्र से छुटकारे के लिये पहली बात तो आम बोयें बबूल नहीं. दूसरी बात आम की बोनी, परिणाम के प्रति इच्छा रहित हो कर करें अर्थात आम के फल का उपभोग नहीं उपयोग करें. उपभोग से तात्पर्य है कि स्वार्थवश समूचे फल का सेवन स्वयं करना तथा उपयोग का तात्पर्य है परमार्थ की भावना सहित फल का सेवन मिल बाँट कर किया जाए. यह पर्मार्थ प्रारम्भ में सीमित और फिर असीमित हो पूरी सृष्टि को विलोपित कर ले तो समझें कि मोक्ष प्राप्त हुआ 
प्रियतम अवतार मेहेर बाबा जी की जय

3 comments:

Your welcome on this post...
Jai Baba to You
Yours Sincerely
Chandar Meher

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