बात चालीस के दशक की है, जब मेरे पिता प्रोफैसर सुरेन्द्र वर्मा आर्य, इलाहाबाद एग्रीकल्चरल इंस्टिट्युट में एग्रीकल्चरल इंजीनीयरिंग की डिग्री कर रहे थे. उस समय न्यू हॉस्टल एग्रीलल्चरल इंजीनीरिंग डिपार्ट्मेंट के सामने का नीचे का विंग ही बना था जहाँ वे रहा करते थे.
ग्रामीण परिवेश से आये सुरेन्द्र आर्य अपने एक वर्ष सीनीयर छात्र को देखते थे. यह सीनीयर उस ज़माने में रेडियो बनाते थे, सुधारते थे, वे फोटॉग्राफी करते थे.
यह शौक़ उस समय काफी फैश्नेबल थे और केवल समपन्न घरों से आये छात्र ही इसे पूरा कर पाते थे.
यह शौक़ उस समय काफी फैश्नेबल थे और केवल समपन्न घरों से आये छात्र ही इसे पूरा कर पाते थे.
एक रोज़ जब सुरेन्द्र आर्य उनके कमरे में गये तो सीनीयर छात्र और उनके मित्र उस समय का आधुनिक खेल मोनॉपली खेल रहे थे. जब सुरेन्द्र ने भी यह खेल खेलने की इच्छा ज़ाहिर की तो इन सीनीयर्स ने उन्हें मना कर दिया.
परीक्षायें पास आ रही थीं सभी छात्र छात्रायें तैयारी में जुट चुके थे किंतु इस टोली के ऊपर से मोनॉपली का भूत उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था. परीक्षायें शुरू भी हुईं और खत्म भी फिर रिज़ल्ट खुलने का समय आ गया. पूरी टोली डरी हुई थी. और हुआ भी वही, पूरी की पूरी टोली फेल हो गयी. हॉस्टल में लौट कर पूरी टोली ने मिलकर मोनोपॉली की होली जलाई और सुरेन्द्र के साथ पढ़ते हुई अपनी डिग्री पूरी की. सुरेन्द्र ने टॉप किया और इस लिये उन्हें गोल्ड मेडल भी मिला.
हमारे पिता बताते हैं, उस समय एग्रीकल्चरल इंजीनीयरिंग डिपार्ट्मेंट के फाऊंडर और हेड प्रोफैसर मेसन वॉ साहब थे. वे बेहद आदर्शवादी, निष्ठावान, और समर्पित प्रोफैसर थे. उन्होंने सुरेन्द्र और उनके सीनीयर जो कि इस टोली में शामिल थे को अध्यापक की नौकरी पर रख लिया. पहले वेतन के तौर पर सुरेन्द्र को रु. 100/- मासिक मिला जब कि सीनेयर छात्र को रु. 105/- मासिक मिला.
सुरेन्द्र ने कुछ संकोच करते हुए प्रोफैसर वॉ से पूछा तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा की तुम्हारे सीनीयर ने इस डिग्री को पाने के लिये तुमसे एक साल ज़्यादा पढ़ाई की है इसलिये उन्हें पाँच रुपये अधिक मिल रहे हैं. सुरेन्द्र ने इस बात को खुशी खुशी स्वीकार किया.
बाद में दोनों ही आई.आए.टी खड़गपुर के फाऊंडर मेम्बर की तरह कार्य किया. जिसके बाद दोनों ही जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर (म.प्र.) आ कर एग्रीकल्चरल इंजीनिरिंग कॉलेज प्राम्भ किया जो कि अभी भी मध्य प्रदेश का अकेला एग्रीकल्चरल इंजीनिरिंग कॉलेज है. सुरेन्द्र के सीनीयर छात्र सीनीयर प्रोफैसर के पद से रिटायर हुए और प्रोफैसर सुरेन्द्र वर्मा आर्य जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति के पद से रिटायर हुये. प्रोफैसर आर्य और उनके सीनीयर छात्र का साथ रिटायर्मेंट तक रहा और अभी भी है. वे अपने सीनीयर का आदर अपने बड़े भाई की तरह करते हैं.
बहुत अच्छा संस्मरण। पता चल गया उस जमाने में भी लोग फेल होते थे...
ReplyDeleteमोनॉपली कैसा खेल है? इसके बारे में कुछ और बताएँ। कैसा चस्का है इसका कि पूरा ग्रुप फेल हो गया।
- आनंद
ध्न्यवाद सर, आप डूबते को तिनके का सहारा हैं. आप के कमेंट हौसला अफज़ाई किये रहते हैं.
ReplyDeleteमोनॉपली, बच्चों द्वारा भारत में खेले जाने वाले व्यापार का ही विदेशी संसकरण है...
राखी की शुभकामनायें
सादर
भावुक प्रसंग। आज सीनियर्स की चर्चा सिर्फ रैगिंग को लेकर ही होती है। क्या ब्लॉगिंग का नशा मोनॉपली जैसा ही है?
ReplyDeletevey good blog with pictures and rich memories .my best wishes and regards.
ReplyDeleteyours thankfully ,
dr.bhoopendra
Thank You so much Bhupendra Sir....
ReplyDeleteचंदर जी,
ReplyDeleteसबसे पहले तो धन्यवाद आपका मेरे ब्लॉग पर आने के लिए ...
ब्लॉग पर फोटो लगाने के लिए किसी तकनिकी जानकारी की आवशयकता नहीं है डेशबोर्ड में डीजाइन में जाकर नया गेजेट जोड़े... इसमें फोटो जोड़े और फोटो आपके ब्लॉग में जुड़ जायेगा ..
यदि फिर भी आपको कोई फोटो जोड़ना है तो आप मुझे वो फोटो और अपने ब्लॉग का टेम्पलेट भेज दीजिये ...... में इसे जोड़ कर आपको वापस भेज दूंगा
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